Thursday, June 30, 2011

your love

The first rain of Monsoon
I open my arms and
Try to catch the drops,

From vault of memory
I heard your words_

"As many drops you catch
Is your love for me and
Those dropped
Are my love for you..."

And i see my wet hand !

(15.06.'08)

तुम

रिश्तों के मिज़ाज बदलते रहते हैं
लेकिन
कुछ भी नहीं बदला है
इतने सालों में
तेरे मेरे बीच
मैं जनता हूँ ...और यकीं भी करता हूँ (!)
महज़ इतनी सी बात हुई मेरे दोस्त
कि_
पहले लोग मुझसे पूछा करते थे
अब मैं लोगों से पूछा करता हूँ
.......ख़बर तुम्हारी !

(१३.०५.'०८)
पतझड़ के उदास जंगल में
एक अकेला हँसता हुआ फूल_

जनता है की बारिश का मौसम आने को है !

(२१.0१.'०८)
रौशनी की तलाश में
अपने ख़्वाब जलाता फिरता हूँ
होश में जाने मैं कौन होता हूँ
बेहोशी में खुद के होने का अहसास ढूँढा करता हूँ...

(१९.०३.'०८)
समेट कर चिंगारियों को
राख़ हो जाने से पहले
हर एक विचार को
आग लगाना चाहता हूँ
दबे हुए शोलों को मैं
फिर से भड़काना चाहता हूँ
भटक रहा हूँ जिस अँधेरे में
उसके पार जाना चाहता हूँ...

(२१.०१.'०८)
In the dark blind night
Sleeping soundlessly
All the words_ in prison..., mocked
Under the old, naked arms of night;

we are in continue_
Walking into the Darkness
Singing through the Silence

And all the melodies
Of the endless night
Appears to be the Rise of Pain

...from the heart of sea
...from the fan of wind

and,
...from the layers of dust !

(..'07)

Sunday, June 26, 2011

राजनीति

लाशें नोंच खा रहे
गिद्ध सरीखे वे मानव(?)
गो-हत्या निषेध के लिए
नर-हत्या जायज़ मानते हैं ,

मंदिरों में नर-बलि देकर
मस्जिदों में खौफ पैदा करते हैं ,

राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोने
हाथों में फूल लिए
"काँटों" को निकाल बाहर करते हैं....
वे राजनीति करते हैं !

(०६.०६.'०६)

चिराग तले अँधेरा

लालटेन जला दिया और कहा
"रख ले इसे सर के ऊपर
संसार को देख समझ पायेगा"

बचपन में कभी पढ़ा था
एक अँधा जो रात में
हाथ में दिया लिए चलता था !

(०६.०६.'०६)
कभी कभी अचानक
जाने कहाँ से....
तुम्हारे बदन की खुशबू
कस्तूरी सी
बेचैन कर जाती है मुझे....
जो दुल्हन की तरह
तुम्हें लेकर आया था अपनी ज़िन्दगी में
शायद एक समझौता भर था
तुम्हारी नज़र में ,
कभी कोई अनचाही घटना
मिले तुमसे जीवन में
तो मिलना_
तुम्हारे सुखों का नहीं तो
तुम्हारे दुखों का हक़दार हूँ मैं

(२६.१२.'०६)
उस छोटी चमकीली तितली का
एक पंख थोड़ा सा टूट गया
पंखे में टकराने की वजह से
मैं बहुत दुखी हूँ ,
मैंने उसे उड़ने से मना किया
वह मानी नहीं
मैंने पंखा बंद कर दिया
और अब वह एक जगह बैठ गयी
उड़ती नहीं !

(१९.०४.'०६)
आँखों में बीती मेरी रातें
सुनाएगी कहानियां तुम्हें
जलते ख्वाबों की
जो मैंने तुम्हारे साथ बुना था.....
राख़ के ढेर से मैं
फिर से उन्ही ख्वाबों को
वजूद में लाने की हिम्मत करता हूँ
हर जागी रात में
जो रोज़
मेरे सामने से गुज़र जाती हैं_.....

(०९.०३.'०७)
मैंने देखा है
रात को मरते हुए
जब चाँद डूब जाता है और
अकेली रात गाती है
सन्नाटों की आवाज़ में
चमकते तारे_
जैसे एक एक क्षण
और फिर अचानक
सारे क्षण कहीं खो जाते हैं
और अंत में
एक अकेला तारा
रात की मृत्यु का साक्षी !

(१९.१२.'०६)

Tuesday, June 21, 2011

अज़ब सा खालीपन है
चाँद है...
आकाश में भी
और गंगा में भी
रुका हुआ सा
और
कांपता हुआ भी
तुम भी यहीं कहीं हो
मेरी जुगनू ?

(१६.१२.'०५)
कहाँ हो तुम
कौन हो तुम
जिसे मैं हर किसी में
ढूंढता फिरा हूँ
आओ
मेरे सर पे हाथ रख दो
सुला दो मुझे
मैं सो जाना चाहता हूँ...

(२५.०३.'०६)
वो मेरे ही वजूद का
सुर्ख राख था
तेरी हाथों से जो उड़ा
गुलाल की तरह !

(१६.०३.'०६)
एक क्षण रुक कर
अचानक से
ढलक पड़ती है
शक्लों में बूंदों के
भींगे हुए
कोनो से पत्तों के
और
आँखों से
सामानांतर !
एक चेहरा
कांपता हुआ
बिखरता है हर बार
क्षण भर का अस्तित्व लिए
हर बूँद में
..... निरंतर !

(१८.०१.'०६)
रेत पर उभरती हैं इबारतें
अतीत के पन्नों के राज़
वर्तमान की उलझी हुई लकीरें और
.... और शायद वह सब भी,
फिर
पता नहीं एक काला बादल
कहाँ से आकर बरस जाता है !

(०३.०६.'०६)

Monday, June 20, 2011

कोई फूल , कोई दरख़्त
नदियाँ , जंगल , पर्वत
बादल या धूप
रिश्ते नाते , सुख या दुःख
पूजा समर्पण , देवता इंसान
या कोई अवधूत...,
तू मेरी अंतिम पसंद है .
भटकता रहा जिनमे मैं अब तक
जाने कौन सी थी वो गलियां
शहर दर शहर , इंसान दर इंसान
लम्बी उलझी हुई पग्दंदियाँ
तुम तक आकर
तेरी आँखों में सब खो जाती हैं
जहाँ के बाद मैं मैं नहीं रह जाऊंगा
इस लम्बे सफ़र का तू वो अंत है .
(०६.०४.'०९)

Saturday, May 21, 2011

गुलमोहर

फिर से सुर्ख हो चला
वो यादों का पेड़ ...
अपनी शाख पर बैठे
इंतज़ार के प्रेत से पूछता है-
किसकी आस है तेरी मुक्ति को
गुलमोहर तो सिर्फ मैं ही हूँ जहाँ में !

(१५.०५.'११)
तुम्हें पुकारता हूँ
और मेरी आवाज़
थक कर कहीं खो जाती है,
निःशब्द रात में...
आंखें रोती नहीं
बदन सिसकता है
दर्द की परियां
जाने कब
असमान से उतर कर
मेरा सिर अपने गोद में रख लेती हैं
और मैं
शायद सो जाता हूँ

(२४.०३.'११)

Friday, May 20, 2011

Warmth of feelings

Wind in March
A mature woman;
Rising from her body
Scent of flowers,
In her half-slept eyes
The falling leaves before the summer..
The colours of nature
Hallowing my mind n soul
In a sleepy noon of March !

(13th March, '11)