Thursday, June 30, 2011

समेट कर चिंगारियों को
राख़ हो जाने से पहले
हर एक विचार को
आग लगाना चाहता हूँ
दबे हुए शोलों को मैं
फिर से भड़काना चाहता हूँ
भटक रहा हूँ जिस अँधेरे में
उसके पार जाना चाहता हूँ...

(२१.०१.'०८)

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