Tuesday, June 21, 2011

रेत पर उभरती हैं इबारतें
अतीत के पन्नों के राज़
वर्तमान की उलझी हुई लकीरें और
.... और शायद वह सब भी,
फिर
पता नहीं एक काला बादल
कहाँ से आकर बरस जाता है !

(०३.०६.'०६)

No comments:

Post a Comment