Saturday, May 21, 2011

गुलमोहर

फिर से सुर्ख हो चला
वो यादों का पेड़ ...
अपनी शाख पर बैठे
इंतज़ार के प्रेत से पूछता है-
किसकी आस है तेरी मुक्ति को
गुलमोहर तो सिर्फ मैं ही हूँ जहाँ में !

(१५.०५.'११)

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