Monday, June 20, 2011

कोई फूल , कोई दरख़्त
नदियाँ , जंगल , पर्वत
बादल या धूप
रिश्ते नाते , सुख या दुःख
पूजा समर्पण , देवता इंसान
या कोई अवधूत...,
तू मेरी अंतिम पसंद है .
भटकता रहा जिनमे मैं अब तक
जाने कौन सी थी वो गलियां
शहर दर शहर , इंसान दर इंसान
लम्बी उलझी हुई पग्दंदियाँ
तुम तक आकर
तेरी आँखों में सब खो जाती हैं
जहाँ के बाद मैं मैं नहीं रह जाऊंगा
इस लम्बे सफ़र का तू वो अंत है .
(०६.०४.'०९)

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