rhythm of life
attraction of incompleteness is more than absolute !
Saturday, May 21, 2011
तुम्हें
पुकारता
हूँ
और
मेरी
आवाज़
थक
कर
कहीं
खो
जाती
है
,
निःशब्द
रात
में
...
आंखें
रोती
नहीं
बदन
सिसकता
है
दर्द
की
परियां
जाने
कब
असमान
से
उतर
कर
मेरा
सिर
अपने
गोद
में
रख
लेती
हैं
और
मैं
शायद
सो
जाता
हूँ
।
(
२४
.
०३
.'
११
)
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