The first rain of Monsoon
I open my arms and
Try to catch the drops,
From vault of memory
I heard your words_
"As many drops you catch
Is your love for me and
Those dropped
Are my love for you..."
And i see my wet hand !
(15.06.'08)
Thursday, June 30, 2011
तुम
रिश्तों के मिज़ाज बदलते रहते हैं
लेकिन
कुछ भी नहीं बदला है
इतने सालों में
तेरे मेरे बीच
मैं जनता हूँ ...और यकीं भी करता हूँ (!)
महज़ इतनी सी बात हुई मेरे दोस्त
कि_
पहले लोग मुझसे पूछा करते थे
अब मैं लोगों से पूछा करता हूँ
.......ख़बर तुम्हारी !
(१३.०५.'०८)
लेकिन
कुछ भी नहीं बदला है
इतने सालों में
तेरे मेरे बीच
मैं जनता हूँ ...और यकीं भी करता हूँ (!)
महज़ इतनी सी बात हुई मेरे दोस्त
कि_
पहले लोग मुझसे पूछा करते थे
अब मैं लोगों से पूछा करता हूँ
.......ख़बर तुम्हारी !
(१३.०५.'०८)
In the dark blind night
Sleeping soundlessly
All the words_ in prison..., mocked
Under the old, naked arms of night;
we are in continue_
Walking into the Darkness
Singing through the Silence
And all the melodies
Of the endless night
Appears to be the Rise of Pain
...from the heart of sea
...from the fan of wind
and,
...from the layers of dust !
(..'07)
Sleeping soundlessly
All the words_ in prison..., mocked
Under the old, naked arms of night;
we are in continue_
Walking into the Darkness
Singing through the Silence
And all the melodies
Of the endless night
Appears to be the Rise of Pain
...from the heart of sea
...from the fan of wind
and,
...from the layers of dust !
(..'07)
Sunday, June 26, 2011
राजनीति
लाशें नोंच खा रहे
गिद्ध सरीखे वे मानव(?)
गो-हत्या निषेध के लिए
नर-हत्या जायज़ मानते हैं ,
मंदिरों में नर-बलि देकर
मस्जिदों में खौफ पैदा करते हैं ,
राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोने
हाथों में फूल लिए
"काँटों" को निकाल बाहर करते हैं....
वे राजनीति करते हैं !
(०६.०६.'०६)
गिद्ध सरीखे वे मानव(?)
गो-हत्या निषेध के लिए
नर-हत्या जायज़ मानते हैं ,
मंदिरों में नर-बलि देकर
मस्जिदों में खौफ पैदा करते हैं ,
राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोने
हाथों में फूल लिए
"काँटों" को निकाल बाहर करते हैं....
वे राजनीति करते हैं !
(०६.०६.'०६)
चिराग तले अँधेरा
लालटेन जला दिया और कहा
"रख ले इसे सर के ऊपर
संसार को देख समझ पायेगा"
बचपन में कभी पढ़ा था
एक अँधा जो रात में
हाथ में दिया लिए चलता था !
(०६.०६.'०६)
"रख ले इसे सर के ऊपर
संसार को देख समझ पायेगा"
बचपन में कभी पढ़ा था
एक अँधा जो रात में
हाथ में दिया लिए चलता था !
(०६.०६.'०६)
Tuesday, June 21, 2011
Monday, June 20, 2011
कोई फूल , कोई दरख़्त
नदियाँ , जंगल , पर्वत
बादल या धूप
रिश्ते नाते , सुख या दुःख
पूजा समर्पण , देवता इंसान
या कोई अवधूत...,
तू मेरी अंतिम पसंद है .
नदियाँ , जंगल , पर्वत
बादल या धूप
रिश्ते नाते , सुख या दुःख
पूजा समर्पण , देवता इंसान
या कोई अवधूत...,
तू मेरी अंतिम पसंद है .
भटकता रहा जिनमे मैं अब तक
जाने कौन सी थी वो गलियां
शहर दर शहर , इंसान दर इंसान
लम्बी उलझी हुई पग्दंदियाँ
तुम तक आकर
तेरी आँखों में सब खो जाती हैं
जाने कौन सी थी वो गलियां
शहर दर शहर , इंसान दर इंसान
लम्बी उलझी हुई पग्दंदियाँ
तुम तक आकर
तेरी आँखों में सब खो जाती हैं
जहाँ के बाद मैं मैं नहीं रह जाऊंगा
इस लम्बे सफ़र का तू वो अंत है .
इस लम्बे सफ़र का तू वो अंत है .
(०६.०४.'०९)
Subscribe to:
Comments (Atom)